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पल – पल बढ़त रात के फंदा, बाहिर नइ निकलत इन्सानअपन प्रथम पारी निपटा लिस, कर अवाज कोलिहा परधान।बिरबिट करिया चारों मुंहड़ा, डर मं सांय सांय अतरापदूझन जीव गाँव ले निकले, सुद्धू अउ धनवा के बाप।जे मनसे के नींद हा परगे, सपना मं डर के बर्रातओकर तिर मं एकोझन नइ, मगर झझक का का गोठियात।बहुरा डर मं दुबक के सोये, भूंकिन कुकुर खूब ए बीचहवलदार बुतकू केंवरी ला, बहुरा हा कर दीस सचेत-“”टोनही मन हा मंतर मारिन, सोनू सुद्धू पर अजमैनओमन ला फिर जीवित कर दिन, धर लिन दुनों कुकुर के रूपओमन ला भगाय झन सोचव, तुम झन निकलव बाहिर पारअगर बात के करत उदेली, तुम पर आहय बड़े बवाल –सोनू अउ सुद्धू दूनों मिल, रूप बदल के बनिहंय बाघतुम्हर प्राण लेहंय थपोल झड़, तंहने बाद मं खाहीं मांस।”सोय झड़ी हा ओढ़ के चद्दर टकटक देखत आंखी।ओहर भय मं लद लद कांपत चुप हे मुंह के बोली।तभे सामने ओहर देखिस – ललिया आंख खड़े सोनसायझड़ी कठिन मं बक्का फोरिस -“”मालिक, तोर सदा मंय दास।बइठक अउ पंचायत होइस, तोर पक्ष मंय भिड़ के लेंवतोर ले निहू रेहेंव हमेशा, तोर विरूद्ध कभू नइ गेंव।धनवा ले बाढ़ी मांगे हंव, ओकर ऋण बइठे मुड़ मोरमंय हा ओला खतम पटाहंव, मोला जिये के अवसर देव।”थोरिक बाद झड़ी हा देखिस, आगू कोती आंख नटेरमगर उहां पर एको झन नइ, वातावरण हवय सिमसाम।ओढ़िस झड़ी हा तुरते चद्दर, मुड़ ले गोड़ रखे हे ढांकमन मन मं प्रार्थना करत हे – हे प्रभु, बचा मोर अब जान।”भगवानी तक डर मं कांपत, आगू तन देखत टक एकतभे एक ठक आकृति उभरिस – सुद्धू खड़े हवय भर क्रोध।भगवानी रोनहू बन बोलिस -“”लड़िन गरीबा अउ धनसायतंहा गरीबा फंस जावय कहि, मंय हा देंव गवाही झूठ।मंय हा गल्ती गजब करे हंव, पर ए डहर भूल नइ होयहाथ जोड़ के माफी मांगत, मोर कुजानिक ला कर माफ।”लघु शंका बर निकल पात नइ, मुश्किल होत रूके बर वेगतब ले मनखे सुतत कलेचुप-मुड़ ऊपर चद्दर ला लेग।दू झन वृद्ध गांव मं पहुंचिन, दीन अवाज मंगे बर भीख-“”हम भिक्षुक अन – भूख मरत हन, हमला देव खाय बर भात।”उंकर अवाज ला गुहा हा सुन लिस, तंह कैना ला करिस सचेत –“”सोनू अउ सुद्धू एं एमन, धमकिन इहां बदल के रूप।ओमन अब बन गीन भिखारी, मांगत भीख गली हर द्वारभिक्षा दान करे बर जाबो, ओमन हमला दिहीं दबोच।मरघट तक ले जाहंय झींकत, जिंहा अभी के उंकर निवासपुनऊ थुकेल झझक झन जावंय, दूनों ला रख बने सम्हाल”हम कतको शिक्षित ज्ञानिक हन, पर मजबूत अंधविश्वासजलगस नइ विज्ञान के शिक्षा, छू मंतर नइ भ्रम के भूत।हर दरवाजा गीन वृद्ध मन, पर कड़कड़ ले बंद किवाड़भूख मं आंटीपोटा बइठत, कंस करलावत इनकर जीव।आखिर एक मकान पास गिन, बइठ गीन होके लस पश्तबुड़ुर बुड़ुर का का गोठियावत, एक दुसर के बांटत कष्ट।जब देखिन अब जीव हा छूटत, मुंह ला फार दीन आवाज-“”मंगन मन ला देव खाय बर, वरना पटिया मरबो आज।”बेंस खोल के अैनस गरीबा, पूछिस -“”रथव कते तुम गांवपरगे बिपत का बोम मचावत, जाय चहत हव काकर छांव?”उनकर हाल गरीबा देखिस -“”अंधरा एक – दुसर विकलांगकुष्ट रोग हा छाय दुनों पर, घिनघिन कपड़ा लटके देह।अंधरा हवय जेन डोकरा हा, अपन रखे हे “मंसा’ नामजेन वृद्ध टेंग टेंग लंगड़ावत, ओकर नाम “पुरानिक’ जान।किहिस पुरानिक -“”हम मंगन अन, कंगलई करत हमर पर राजमुंह चोपियात पिये बिन पानी, पेट हा कलपत बिगर अनाज।”लाला लपटी देख गरीबा, दया देखात – मरत हे सोगपर सुद्धू मरगे तेकर बर, काठी छुआ अशुद्ध समान।शंका ला सुन मंसा बोलिस -“”अपन चोचला रख खुद पासशुद्ध अशुद्ध ला हम नइ मानन, काठी छुआ ला रखथन दूर।एला अगर मान्यता देबो, ककरो इहां सकन नइ खानतब तो हमर जीव तक जाहय, तन असक्त पर बहुत अजार।जे सम्पन्न शक्ति धर – सक्षम, चलथय नियम धियम ला मानउंकर बुराई कोन हा करही, बेर हा हरदम बर बेदाग।”अंदर लान सियनहा मन ला दीस गरीबा बासी।दूसर मन दुत्कारिन लेकिन खुद काबर दे फांसी।बड़े कौर धर खात वृद्ध मन, कभू खाय नइ तइसे लेतबुड़त सइकमा मं डाढ़ी हा, तेकर घलो कहां कुछ चेत!कथय गरीबा -“”देव ज्वाप तुम – काबर किंजरत पर के द्वारतुम्हर सहायक जेन व्यक्ति हे, का कारण उठाय नइ भार।?”किहिस पुरानिक -“”का बतान हम – यद्यपि हवंय हमर संतानलेकिन कुष्ट रोग के कारण, करथंय घृणा-भगावत दूर।पुरबल कमई के कारण हमला, घृणित रोग हा सपड़ा लीसहम ए बखत रतेन निज छंइहा, किंजर के खोजत बासी – छांय।”किहिस गरीबा -“”कोन हा कहिथय, पाप के कारण कुष्ठ अजारभ्रम के बात कभू झन मानो, एकर होथय खुंटीउजार।कुष्ठ रोग ला खतम करे बर, निकल गे हावय दवई प्रसिद्धओकर सेवन करो नियम कर, तंहने तन हो जहय निरोग।”
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