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{{KKRachna
|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा
|संग्रह=कविता के विरुद्ध / योगेंद्र कृष्णा
}}
<poem>
जंगल से पेड़ उठा कर
बाग में लगा सकते हो
इतने से लेकिन
बाग जंगल नहीं हो जाता
अपना पूरा बाग
जंगल को सौंप सकते हो
लेकिन जंगल फिर भी
बाग नहीं कहलाता
जंगल होने के लिए
प्रेम करने का हौसला चाहिए
उन चीजों से
जो तुम्हारी नज़र में
ज़रूरी नहीं सुंदर हों
इसके लिए तुम्हें
अपने बाग से निकल कर
यायावर हो जाना होगा
एक ऐसा यायावर
जो अपनी थकान के बावजूद
मुग्ध होता है हर पेड़ पर
और नहीं जनता
फिर भी किसी
पेड़ का नाम…
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|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा
|संग्रह=कविता के विरुद्ध / योगेंद्र कृष्णा
}}
<poem>
जंगल से पेड़ उठा कर
बाग में लगा सकते हो
इतने से लेकिन
बाग जंगल नहीं हो जाता
अपना पूरा बाग
जंगल को सौंप सकते हो
लेकिन जंगल फिर भी
बाग नहीं कहलाता
जंगल होने के लिए
प्रेम करने का हौसला चाहिए
उन चीजों से
जो तुम्हारी नज़र में
ज़रूरी नहीं सुंदर हों
इसके लिए तुम्हें
अपने बाग से निकल कर
यायावर हो जाना होगा
एक ऐसा यायावर
जो अपनी थकान के बावजूद
मुग्ध होता है हर पेड़ पर
और नहीं जनता
फिर भी किसी
पेड़ का नाम…