भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
चमरटोला में
जने कहा कत्त हैं
अरे ससुरऊ हुंआ झार फूंक सीखत हैं
कै परे रहत समला के उसारे में
जाने कित्ते गुलाम बनि गए बाके
अरे गोरी चमड़ी पहलें नायं देखी कभऊं
सो का सबई करिआ और कुलच्छिनी हैं?
कह रए हते हुआं कुआं की मेड़ पै
‘बौहत बुरो होता है जू इसक
सनीमां देखि देखि कै’
अब गांउन मेंई कसर रह गई हती