भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
चमरटोला में
जने कहा कत्त हैं
हंुअई हुंअई से कछु सीखि लओझार-फूंक थोरीकछुथोरी कछु
अरे ससुरऊ हुंआ झार फूंक सीखत हैं
कै परे रहत समला के उसारे में
जाने कित्ते गुलाम बनि गए बाके
अरे गोरी चमड़ी पहलें नायं देखी कभऊं
घ्र घर में जो मेहरिआं बैठी है
सो का सबई करिआ और कुलच्छिनी हैं?
कह रए हते हुआं कुआं की मेड़ पै
‘बौहत बुरो होता है जू इसक
ाहन्न शहन्न में तो लौंडा लौंडिया भीत कन्न लगे हैं
सनीमां देखि देखि कै’
अब गांउन मेंई कसर रह गई हती