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ओळयूं / गौरीशंकर

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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
थोरी ओळयूं
बाजरी रा सिट्टा माथै
बैठी अेक चिड़कली
चीं-चीं कर हांसै।

थारै उणमांन
देखूं चिड़कली
उड़गी
देखतौ जावूं
थारै ओळयूं रै उणमानं।
</poem>
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