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पतंग / मनोज देपावत

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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
धिन भाग है पतंग बणावणियै नै
धरती पर अेक चीज तो
ऐड़ी बणाई
जीं नै देख‘र नीचै आळा
घमंडीजै कै
ऊपर वाळै री डोर
नीचै वाळै रै हाथां में है।

</poem>
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