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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
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|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
कितनी
रंगीन महफ़िल थी यार !
शायरी और शबाब का दौर..
मगर इसमें भी
'उस' साले ने
आलू, प्याज
रसोई गैस के बढ़े दाम...घुसेड़ दिए
उफ्फ्फ...
ये छोटे लोग न
कभी बड़ा
सोंच ही नही सकते

</poem>
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