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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय सिंह नाहटा
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
कठै ई दूर बिरखा है
डूंगर री गम्योड़ी चोटी सी
धवळा बादळ री हलचल
अंतहीण ओ दीठाव
सूंत‘र ले जावै सम्मोहण में
ऊपर चोटी माथै
अरे! ओ कैड़ो उच्छाव है
उपराड़ै रो।
</poem>
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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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कठै ई दूर बिरखा है
डूंगर री गम्योड़ी चोटी सी
धवळा बादळ री हलचल
अंतहीण ओ दीठाव
सूंत‘र ले जावै सम्मोहण में
ऊपर चोटी माथै
अरे! ओ कैड़ो उच्छाव है
उपराड़ै रो।
</poem>