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|रचनाकार=कुंजन आचार्य
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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
थूं मूळक
अर मूं गीत गाऊं
हथेली पे हरूं उगाऊं।
थारी हंसी
ज्यूं चांदनी चमकै खेत में
चिंता फिकर है उड़न छू
मूं जद सूं थारा हेत में।
पीळी-पीळी हरूं
ठेठ तक दमकं री है
ज्यूं एक पीळी बिन्दी
थारा ललाट पर चमक री है।
दो वसन्त रो उच्छब है।
मन करै रोज थारै सागै
यो उच्छब मनाऊं
थूं मुळक
अर मूंग गीत गाऊं
हथेली पे हरूं उगाऊं।

</poem>
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