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{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन पुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
बुणगट थांरी अर म्हारी
अेक....
अन्न-जळ थांरो अर म्हारो
अेका अेक....
लोही, थांरो अर म्हारो
अेक सरीखो...
जीवण थांरो अर म्हारो
अेक ई पगडाण्डी...
... तो फेर क्यूं
होवै...
आपसरी रा बांथेड़ा ?
</poem>
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बुणगट थांरी अर म्हारी
अेक....
अन्न-जळ थांरो अर म्हारो
अेका अेक....
लोही, थांरो अर म्हारो
अेक सरीखो...
जीवण थांरो अर म्हारो
अेक ई पगडाण्डी...
... तो फेर क्यूं
होवै...
आपसरी रा बांथेड़ा ?
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