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चीख / मोहन पुरी

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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>

कालै मिल्यो हो
तू चौखूंटी माथै
चौखूंटी माथै
जोर-जोर सूं
बोकाड़ा फाड़तो
रोवतो थकां....
म्हूं कींकर
मैसूस रियो हूं
उण री चीख
अजै तांई म्हारा कानां में ?

</poem>
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