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पग / ओम पुरोहित ‘कागद’

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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
कठै धरां
पग
दूखै
मुरधर री
रग-रग।

सुपना
सुकाळ रा
देवै दुख
भूख देवै
दकाळाँ।

नीं मिटै
दुख रा
जंजाळा।

दुख
काळ रो
दकाळ रो।
</poem>
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