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|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
रूंख नै ही भूख
डाळी काढण री
डाळी माथै
हर्या काच्चा पान
पानां बिचाळै पुहुप
पुहुपां सूं बणता
मीठा फळ
फळ भखता
जीव-जिनावर
पण
कदै ई नीं ही भूख
घर री चौगाट
खाट
मेज-कुरसी बणन री
भूख तो पसरी
मिनख री
जकी जीमगी
समूळो रूंख!
</poem>
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