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|रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी'
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
दुनिया बतावै पाप
पाप री नीं
खुद री कोई भासा - बोली
नीं कोई परिभासा
अेक पाप थारो
अेक पाप म्हारो
जद सागै हां
तो कियां हुया न्यारो -न्यारो
लोगां री निजरां मांय पाप
हुवै तो हुवै
उण पापी दुनिया री
थूं क्यूं सुणै
कैवण दै
कैवणिया कैवैला
जंवाई तो इयां ई जीमैला।
</poem>
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