भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
अंधे राजा के सब पहरेदार सो गये,
प्रजा सजग है धोख धोखे में दरबार मगर है।
गाँव छज्ञेड़कर छोड़कर अपना मैं यह कहाँ आ गया,
पुठपाथों पर जगह नहीं सम्पन्न शहर है।