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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=रोशनी का कारव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अपने दरपन से लड़ गया कोई।
सीधे शूली पे चढ़ गया कोई।
अपने भीतर की आग में जलकर,
बसते-बसते उजड़ गया कोई।
जिंदा होता तो ये नहीं होता,
लाश जैसे अकड़ गया कोई।
इस अदालत में बस यही होता,
जुर्म किसका, पकड़ गया कोई।
मेरे दस्ते दुआ तो ऊपर थे,
जब गिरेबाँ पे बढ़ गया कोई।
अपना वो घर, वो गाँव याद आया,
जब वतन से बिछड़ गया कोई।
</poem>
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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
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अपने दरपन से लड़ गया कोई।
सीधे शूली पे चढ़ गया कोई।
अपने भीतर की आग में जलकर,
बसते-बसते उजड़ गया कोई।
जिंदा होता तो ये नहीं होता,
लाश जैसे अकड़ गया कोई।
इस अदालत में बस यही होता,
जुर्म किसका, पकड़ गया कोई।
मेरे दस्ते दुआ तो ऊपर थे,
जब गिरेबाँ पे बढ़ गया कोई।
अपना वो घर, वो गाँव याद आया,
जब वतन से बिछड़ गया कोई।
</poem>