भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=रोशनी का कारव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
इस मिट्टी को छूकर देखो गाँव दिखायी देगा।
सर्दी- गर्मी खाकर देखों गाँव दिखायी देगा।
गाँव बड़ा अच्छा लगता है वहाँ से बैठे- बैठे,
दो दिन गाँव में रहकर देखो गाँव दिखायी देगा।
गाँव न हो तो कहाँ जाँय ये जीव -जन्तु बेचारे,
कीरा - बीछी, गोजर देखो गाँव दिखायी देगा।
भेालेराम की भेाली सूरत जो अंदर वो बाहर,
कंकर - कंकर शंकर देखो गाँव दिखायी देगा।
गाँव छोड़कर कहाँ आ गये क्या खेाया, क्या पाया,
फिर से गाँव लौटकर देखो गाँव दिखायी देगा।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
इस मिट्टी को छूकर देखो गाँव दिखायी देगा।
सर्दी- गर्मी खाकर देखों गाँव दिखायी देगा।
गाँव बड़ा अच्छा लगता है वहाँ से बैठे- बैठे,
दो दिन गाँव में रहकर देखो गाँव दिखायी देगा।
गाँव न हो तो कहाँ जाँय ये जीव -जन्तु बेचारे,
कीरा - बीछी, गोजर देखो गाँव दिखायी देगा।
भेालेराम की भेाली सूरत जो अंदर वो बाहर,
कंकर - कंकर शंकर देखो गाँव दिखायी देगा।
गाँव छोड़कर कहाँ आ गये क्या खेाया, क्या पाया,
फिर से गाँव लौटकर देखो गाँव दिखायी देगा।
</poem>