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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
उधर हैं आधियाँ इधर चिराग़ जलता है।
वहीं है खार, वहीं फूल भी विहँसता है।
हवस के नाम पे क्या-क्या बटोरता इन्साँ
जो देखो पास से तो फिर ग़रीब रहता है।
कहूँ कैसे ये अहमियत नहीं है पैसे की
हरेक आदमी पैसे की बात करता है।
मेरा बेटा नयी तहजी़ब पढ़ के आया है
वो बुजुर्गो को पुराने ख़याल कहता है।
</poem>
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|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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उधर हैं आधियाँ इधर चिराग़ जलता है।
वहीं है खार, वहीं फूल भी विहँसता है।
हवस के नाम पे क्या-क्या बटोरता इन्साँ
जो देखो पास से तो फिर ग़रीब रहता है।
कहूँ कैसे ये अहमियत नहीं है पैसे की
हरेक आदमी पैसे की बात करता है।
मेरा बेटा नयी तहजी़ब पढ़ के आया है
वो बुजुर्गो को पुराने ख़याल कहता है।
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