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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ज़िंदगी दो-चार पल बहला गये।
हुस्न की ताक़त मुझे दिखला गये।
बढ़ गया जब इश्क का मेरे जुनूँ,
चाँदनी की धार में नहला गये।
प्यार के दो बोल मीठे बोलकर,
आइने-सी आँख को पिघला गये।
कब लगे वो अजनबी जैसे मुझे,
कब मेरे वो अंक में इठला गये।
कब खुशी से भर दिया मेरा हृदय,
कब कलेजा भी मेरा दहला गये।
</poem>
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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
}}
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ज़िंदगी दो-चार पल बहला गये।
हुस्न की ताक़त मुझे दिखला गये।
बढ़ गया जब इश्क का मेरे जुनूँ,
चाँदनी की धार में नहला गये।
प्यार के दो बोल मीठे बोलकर,
आइने-सी आँख को पिघला गये।
कब लगे वो अजनबी जैसे मुझे,
कब मेरे वो अंक में इठला गये।
कब खुशी से भर दिया मेरा हृदय,
कब कलेजा भी मेरा दहला गये।
</poem>