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इज़्ज़तपुरम्-42 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
अंतिम छोर
अदृश्य इतिहास की
जड़ों का

पर
इतना जरूर
तालाब पूर्व में
स्वयमेव बनते
और उनमें
आ जातीं
कहीं से
मछलियाँ

पर
नयी सभ्यता के
आलीशान दौर में
फावड़े-कुदाल से
नयी टेक्नीक से
गहरे
तालाब खुदें
भरे जांयें
नलकूप से
फाँस-फाँस
लायी जायें लाचार
आँगुलिकाएँ
टुकड़े-टुकड़े विकसे
गेाश्त उ़द्योग

कभी
यंत्रणाओं के
सैलाब में
कभी
शीशे के जार में
प्यार से उतारकर
</poem>
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