भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपिका केशरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दीपिका केशरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
ये दिल्ली भी अजीब दिल्लगी करता है
सब कुछ है यहाँ
पर सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है,
शोर के पीछे सन्नाटा है
सारे ताम झाम के पीछे नीली सी तमाम रातें हैं,
रंगीन पानी पे तैरता अकेलापन है
और धुंए में उङता खुशी गम का राग है,
रोज एक हूक उठती है मन में
हाय,ये शहर कितना अकेला है !
यहां के धूप में बहते अवसाद को स्पर्श करो तो
वो अवसाद
बिखर आता है चेहरे पे
और जब उस अवसाद को चूम लो आगे बढ़कर
तो वो भी चूम लेता है आगे बढ़कर,
इस शहर को थपकियों की जरूरत है
इस शहर की जरूरतें बढ़ दि गई है
ये शहर के दिल में अब भी एक बच्चा रहता है
जो बेवजह ही तुम्हारी याद दिलाता है !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,957
edits