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|रचनाकार=सुरेश चंद्रा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
अलौकिक थी
... पहली छुअन
निष्पाप, निश्छल
आद्र दृष्टि के साक्ष्य मे
अंतिम चुंबन तक
हम देह पर देहिल गंध
... अनुबंध मात्र रह गये
अतृप्तता के अरण्य से
उकताहट की ऊभ-चूभ में
विलुप्त होते हुये
एक अंतहीन असमंजस
अनंत आपाधापी लिये
हम दोनों प्रेम मे
प्रेम के अपराधी हो चुके थे !!
- SC
</poem>
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अलौकिक थी
... पहली छुअन
निष्पाप, निश्छल
आद्र दृष्टि के साक्ष्य मे
अंतिम चुंबन तक
हम देह पर देहिल गंध
... अनुबंध मात्र रह गये
अतृप्तता के अरण्य से
उकताहट की ऊभ-चूभ में
विलुप्त होते हुये
एक अंतहीन असमंजस
अनंत आपाधापी लिये
हम दोनों प्रेम मे
प्रेम के अपराधी हो चुके थे !!
- SC
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