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Kavita Kosh से
रोटियाँ जला ली तुमने
क्या सोचती रहती हो ??क्या खदबदाता है अंदर ??
अब, जब-जब धधकना
अश्रुओं की आंच मद्धम कर लेना
जब-जब बिखरना
घर की सूनी देहरी पर
जलना तुम, दीये की बोली