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Kavita Kosh से
मेरे क़दम जहाँ पड़े सजदे किए थे यार ने
मुझको रुला -रुला दिया जाती हुई बहार ने
अपनी नजर में आज कल दिन भी अन्धेरी रात है
जाने कहाँ गए वो दिन
कहते थे तेरी राह में नजरों को हम बिछाएँगे
कल खेल में हम हो न हों गर्दिश में तारे रहेंगे सदा
ढूँढ़ोगे तुम, ढूँढ़ेंगे वो, पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा
रहेंगे यहीं अपने निशाँ, इसके सिवा जाने कहाँ
जी चाहे जब हमको आवाज़ दो, हम हैं वहीं, हम थे जहाँ
हम हैं वहीं, हम थे जहाँ इसके सिवा जाना कहाँ
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