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<poem>

हमें जिसने अभी रुसवा किया था
कभी उसने हमें सिजदा किया था

भरोसे का बिखरना था मुअय्यन,
ज़ुरूरत से बहुत-ज़्यादा किया था

किसी को ध्यान तो होगा नहीं,पर
किसी ने कल कोई वादा किया था

बहुत दिन बाद माना था वो मुझसे
कई दिन बाद जो झगड़ा किया था

अभी तो सोच कर घिन आ रही है
तुम्हारे प्यार में क्या-क्या किया था

भला किस का नतीजा है ये कहिये
अजी दिल आपने ये क्या किया था

तो इस के बाद क़ाफ़िर क्यों न होते!
ख़ुदा ने क्या कहा, ये क्या किया था?
</poem>