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Kavita Kosh से
बात हो रही है अब इल्म के ज़ख़ीरों की
लामकां मकीनों की, खुशनुमा जज़ीरों की
बात हो रही है अब इल्म के ज़ख़ीरों की
हर ख़ुशी क़दम चूमे कायनात की उसके
रास आ गयीं गईं जिसको सुह्बतें फ़क़ीरों की
सूर, जायसी, तुलसी और कबीर, ख़ुसरो को
बेबसी से तकती हैं दौलतें अमीरों की
जिस्म की सजावट में रह गए उलझकर जो
रूह तक नहीं पहुँची फ़िक़्र उन हक़ीरों की
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