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|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
अच्छी बात वही जिसको मर्ज़ी अपनाती है।
बात वही गंदी जो सब पर थोपी जाती है।

मज़्लूमों का ख़ून गिरा है, दाग़ न जाते हैं,
चद्दर यूँ तो मुई सियासत रोज़ धुलाती है।

रोने चिल्लाने की सब आवाज़ें दब जाएँ,
ढोल प्रगति का राजनीति इसलिए बजाती है।

फंदे से लटके तो राजा कहता है बुजदिल,
हक़ माँगे तो, जनता बद’अमली फैलाती है।

सारा ज्ञान मिलाकर भी इक शे’र नहीं होता,
सुन, भेजे से नहीं, शाइरी दिल से आती है।
</poem>
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