भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatKavita}}
<poem>
वो जो कहीं छुपकररोशनी में नहाता है कहा था ... मैं नहींयाद है? जमीं बड़ी कोमल
मेरा मैंवो नहीं जो मैं होता रहता हूँ यक्सरकि इसको ज़िल्द पहना चाहिए
गिनने को ख़ला में और क्या-क्या हैं? वो क्षितिज ...ये पंक्तिबद्ध टांकी गिरहें रेजगारियाँ क्षिप्रा के पारजिस्मोउसे जो चूमता-जां के हजारों पैबंदसा दिख रहा है शाम ढलतेपुराने होते नहींकोई माशूक-सा लगता ... न होंगेआवारा
मेरा नसीब और मैंकि जैसे सेमल के फूल सेता परिंदाऔर कांटे यहाँ उलटे उगते हैंकहो है सत्य कितना?
दफ़्न हुई ख़लिश बराबरी की मोटी परतेंबात करते बाज़ुबां तुमस्मृति के कोठार पर खामोश खड़ी आज भी जिंदा हैंकसम से नाच उठते
ये दुनिया के मेले ... नाक़ाफी झुंड का कोई नाम कहाँ होता याद है ?
अनगिन धागों की फांस से जकड़ा पतंग ही तो हूँउड़ता जाता हूँ अनिर्दिष्ट गिनने को होंगी दस दिशाएँ न समझा ... मेरी ज़द मेरी नहींनोंच लोगे लुंचे मांसक्षितिज से भी निठुर तुमहवा की रौ उसकी मनमर्जियाँमेरी परवशता ... मेरा प्रारब्ध ये फांसें कण्ठहार हैं ... स्वीकार तुमको मालूम ...? ये जो अनंत स्वतंत्र फैला है सब तेरानुचे गर्दन से बहते रक्त कत्थईमेरे हिस्से का आकाश मेरा नहींक्षिप्रा के ठंडे धार धोएंगे
</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,612
edits