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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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हमारे मिलने का एक रस्ता बचा हुआ है
अभी तलक फोन बुक में नम्बर लिखा हुआ है
दिलों में जो नफ़रतों का मलबा पड़ा हुआ है
हमारा इंसान इसके नीचे दबा हुआ है
रखी हुई है जगह जगह पे ये किसने माचिस
दिलों में आतिश ज़नी का धड़का लगा हुआ है
तुम्हें जो साहब कहेंगे, तुम को वही है लिखना
हमें पता है क़लम तुम्हारा बिका हुआ है
न जाने क्या क्या ख़्याल मुझ को डरा रहे हैं
कि जब से स्कूल मेरा बेटा गया हुआ है
</poem>
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हमारे मिलने का एक रस्ता बचा हुआ है
अभी तलक फोन बुक में नम्बर लिखा हुआ है
दिलों में जो नफ़रतों का मलबा पड़ा हुआ है
हमारा इंसान इसके नीचे दबा हुआ है
रखी हुई है जगह जगह पे ये किसने माचिस
दिलों में आतिश ज़नी का धड़का लगा हुआ है
तुम्हें जो साहब कहेंगे, तुम को वही है लिखना
हमें पता है क़लम तुम्हारा बिका हुआ है
न जाने क्या क्या ख़्याल मुझ को डरा रहे हैं
कि जब से स्कूल मेरा बेटा गया हुआ है
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