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{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
दरखत तो दरखत ई हुवै
पतझड़ हुवै
डाळ्यां सूनी हुवै
चिड़कल्यां नीं सरमावै
बातां करै, चांय-चांय करती
तिरस बुझावै
सूकी डाळ्यां बैठ
पाळसियां सूं।
काळी-पीळी आंधियां
सांय-सांय करती टैम
बैठी बिदक जावै
पाळसियै रै च्यारूंमेर
नीं हुवै हरै पत्तां रो सुख
सूकी डाळ्यां सुख देवै
पाळसिया हुवणै सूं।
इंदर राजा!
नीं बरसै तो ना बरस
छपक-छपक करती
हींडा हींडै चिड़कल्यां
तिरस बुझावै
नीं हुवै गरमी रो अैसास
पाळसिया हुवणै सूं।
</poem>
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|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
दरखत तो दरखत ई हुवै
पतझड़ हुवै
डाळ्यां सूनी हुवै
चिड़कल्यां नीं सरमावै
बातां करै, चांय-चांय करती
तिरस बुझावै
सूकी डाळ्यां बैठ
पाळसियां सूं।
काळी-पीळी आंधियां
सांय-सांय करती टैम
बैठी बिदक जावै
पाळसियै रै च्यारूंमेर
नीं हुवै हरै पत्तां रो सुख
सूकी डाळ्यां सुख देवै
पाळसिया हुवणै सूं।
इंदर राजा!
नीं बरसै तो ना बरस
छपक-छपक करती
हींडा हींडै चिड़कल्यां
तिरस बुझावै
नीं हुवै गरमी रो अैसास
पाळसिया हुवणै सूं।
</poem>