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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
साफ़ सुथरा है चाहे छोटा है
शह्र से अपना गांव अच्छा है
ज़िन्दगानी का क्या भरोसा है
ज़िन्दगी इक हसीन धोखा है
मानते हैं उसे भी हम फ़नकार
हार अश्कों का जो पिरोता है
चांद तारे भी तोड़ लाऐगा
तितलियों को पकड़ता बच्चा है
हम को तन्हाईयां गवारा हैं
भीड़ से हम को ख़ौफ़ आता है
दोस्तो रास्ता महब्बत का
दिल की बस्ती से हो के जाता है
लाख इस दिल को हमने समझाया
दिल हमारा न फिर भी ठहरा है
घर की ख़्बाहिश न भूल कर करना
ऐसी ख़्बाहिश तो इक छलावा है
शह्र भर में है र्क्फयू’ नाफिज़
हर कोई अपने घर में बैठा है
</poem>
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|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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साफ़ सुथरा है चाहे छोटा है
शह्र से अपना गांव अच्छा है
ज़िन्दगानी का क्या भरोसा है
ज़िन्दगी इक हसीन धोखा है
मानते हैं उसे भी हम फ़नकार
हार अश्कों का जो पिरोता है
चांद तारे भी तोड़ लाऐगा
तितलियों को पकड़ता बच्चा है
हम को तन्हाईयां गवारा हैं
भीड़ से हम को ख़ौफ़ आता है
दोस्तो रास्ता महब्बत का
दिल की बस्ती से हो के जाता है
लाख इस दिल को हमने समझाया
दिल हमारा न फिर भी ठहरा है
घर की ख़्बाहिश न भूल कर करना
ऐसी ख़्बाहिश तो इक छलावा है
शह्र भर में है र्क्फयू’ नाफिज़
हर कोई अपने घर में बैठा है
</poem>