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{{KKRachna
|रचनाकार=निर्मला सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>उसमें एक नहीं
चारों दिशाएँ हैं
जब उठती है
तब पूरब,
जब सोती है
तब पश्चिम,
दिन भर खटती चलती है,
उत्तर और दक्षिण-सी,
सृष्टि के इस छोर से
उस छोर तक,
वह और कोई नहीं
तुम्हारी माँ है,
बहिन है,
पत्नी है।
</poem>
|रचनाकार=निर्मला सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>उसमें एक नहीं
चारों दिशाएँ हैं
जब उठती है
तब पूरब,
जब सोती है
तब पश्चिम,
दिन भर खटती चलती है,
उत्तर और दक्षिण-सी,
सृष्टि के इस छोर से
उस छोर तक,
वह और कोई नहीं
तुम्हारी माँ है,
बहिन है,
पत्नी है।
</poem>