भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

औरत / निर्मला सिंह

636 bytes added, 20:47, 18 दिसम्बर 2018
'{{KKRachna |रचनाकार=निर्मला सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKRachna
|रचनाकार=निर्मला सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>उसमें एक नहीं
चारों दिशाएँ हैं
जब उठती है
तब पूरब,
जब सोती है
तब पश्चिम,
दिन भर खटती चलती है,
उत्तर और दक्षिण-सी,
सृष्टि के इस छोर से
उस छोर तक,
वह और कोई नहीं
तुम्हारी माँ है,
बहिन है,
पत्नी है।
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
7,916
edits