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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|अनुवादक=
|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
गर्म दाल चावल खाने की प्रबल इच्छा उँगलियों से चलकर होंठों से
होती हुई शरीर के सभी तन्त्रों में फैलती है।
यह उसकी मौत का दिन है।
एक साधारण दिन
जब खिड़की से कहीं बालटी में पानी भरे जाने की आवाज़ आ रही है।
सड़क पर गाड़ियों की तादाद और दिनों से कम है
कि याद आ जाए यह छुट्टी का दिन है।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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गर्म दाल चावल खाने की प्रबल इच्छा उँगलियों से चलकर होंठों से
होती हुई शरीर के सभी तन्त्रों में फैलती है।
यह उसकी मौत का दिन है।
एक साधारण दिन
जब खिड़की से कहीं बालटी में पानी भरे जाने की आवाज़ आ रही है।
सड़क पर गाड़ियों की तादाद और दिनों से कम है
कि याद आ जाए यह छुट्टी का दिन है।
</poem>