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|रचनाकार=मधु शर्मा
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}}
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<poem>
उठ जागे आवर्तित
दो नीले वृत्त
सहोदर
कहते कुछ ख़ास
वे इतने पास
रंगों पर रंग चढ़े अनमने
खुल जाते याद में ठने
वे मंत्र मृत्युंजयी
त्रिभुजों के पार...
</poem>
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उठ जागे आवर्तित
दो नीले वृत्त
सहोदर
कहते कुछ ख़ास
वे इतने पास
रंगों पर रंग चढ़े अनमने
खुल जाते याद में ठने
वे मंत्र मृत्युंजयी
त्रिभुजों के पार...
</poem>