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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
उसने आंखों को अपनी दीद न दी
दिल लिया पर कोई रसीद न दी
ग़म की ख़ैरात बाँटता ही रहा
खुशी कोई भी तो खरीद न दी
इतनी तरीकियाँ दीं रातों को
इन निगाहों को कोई ईद न दी
राह मंजिल की दिखा दी उसने
रूह कोई मगर मुरीद न दी
बात गर्दिश की बताई फिर भी
बच के रहिये यही ताक़ीद न दी
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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उसने आंखों को अपनी दीद न दी
दिल लिया पर कोई रसीद न दी
ग़म की ख़ैरात बाँटता ही रहा
खुशी कोई भी तो खरीद न दी
इतनी तरीकियाँ दीं रातों को
इन निगाहों को कोई ईद न दी
राह मंजिल की दिखा दी उसने
रूह कोई मगर मुरीद न दी
बात गर्दिश की बताई फिर भी
बच के रहिये यही ताक़ीद न दी
</poem>