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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
वक्त के साथ ढलना हमें आ गया
देख के ग़म पिघलना हमें आ गया

लड़खड़ाने लगे रास्तों पर मगर
ठोकरों से सँभलना हमें आ गया

लोग काँटे बिछाते डगर में रहे
उनसे बच के निकलना हमें आ गया

जिंदगी भर तपे कर्म की आँच में
शाम के साथ ढलना हमें आ गया

एक संकल्प की ली कुदाली उठा
भाग्य अपना बदलना हमें आ गया

</poem>