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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जहन्नुम बनी ज़िन्दगी आज क्यों है
बुझी जा रही रौशनी आज क्यों है
न काँटों की दहशत ना लोगों की नफ़रत
कली मालियों से डरी आज क्यों है
जवां देश के मर रहे सरहदों पर
हुई भारती अनमनी आज क्यों है
यहाँ कौरवों की मची नाश-लीला
नहीं श्याम वंशी बजी आज क्यों है
कन्हैया उठो शंख फूंको समर का
लहू बूंद रग में जमी आज क्यों है
</poem>
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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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जहन्नुम बनी ज़िन्दगी आज क्यों है
बुझी जा रही रौशनी आज क्यों है
न काँटों की दहशत ना लोगों की नफ़रत
कली मालियों से डरी आज क्यों है
जवां देश के मर रहे सरहदों पर
हुई भारती अनमनी आज क्यों है
यहाँ कौरवों की मची नाश-लीला
नहीं श्याम वंशी बजी आज क्यों है
कन्हैया उठो शंख फूंको समर का
लहू बूंद रग में जमी आज क्यों है
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