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<poem>
धरती काटे अंबर काटे
तुम बिन हर इक मंज़र काटे

उस पापी का मंतर काटे
कोई पीर पयंबर काटे

प्यार में दुनिया बिल्ली बन कर
मेरा रस्ता अक्सर काटे

फस्ले मुहब्बत की दीवानी
दिन भर बोये शब भर काटे

रोने के दिन भी आये थे
लेकिन हमने हँसकर काटे

तुझ बिन मुझको नींद न आये
रैन डसे और बिस्तर काटे

देते हो तुम जिनकी दुहाई
वो दिन हमने अक्सर काटे

इक ज़ालिम शमशीर बकफ़ है
देखो किस किस का सर काटे


</poem>