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{{KKRachna
|रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी'
|अनुवादक=
|संग्रह=आकाश नीला है / बाल गंगाधर 'बागी'
}}
{{KKCatDalitRachna}}
<poem>
इंसान तो इंसान है मजहब कोई नहीं
दिल सभी का दोस्त है देरो1 हरम2 नहीं
कोई नहीं अजान न मंदिर की घंटियां
दो बोल प्यार के किसी से कम नहीं
इंसान के दिमाग से कुछ काम निकलता है
और इस अजीज-सा कोई वतन नहीं
</poem>
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|संग्रह=आकाश नीला है / बाल गंगाधर 'बागी'
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इंसान तो इंसान है मजहब कोई नहीं
दिल सभी का दोस्त है देरो1 हरम2 नहीं
कोई नहीं अजान न मंदिर की घंटियां
दो बोल प्यार के किसी से कम नहीं
इंसान के दिमाग से कुछ काम निकलता है
और इस अजीज-सा कोई वतन नहीं
</poem>