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{{KKRachna
|रचनाकार=सुनीता पाण्डेय 'सुरभि'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
दिल मेरा जब से तेरा तलबगार हो गया।
महसूस कर रही हूँ मुझे प्यार हो गया॥
जब से मिले हो तुम मुझे राहे-हयात में-
मेरे भी ग़म का कोई ख़रीदार हो गया।
सच्चा नहीं है कोई भी इंसान जहाँ में-
झूठा हर एक शख़्स का किरदार हो गया।
पहरा था आसमान पर बादल का रात भर-
मुश्किल था फिर भी चाँद का दीदार हो गया।
बक्शी थी रब ने दौलते-दिल वह भी लुट गई-
दीवाना तेरा मुफ़लिस-ओ-नादार हो गया।
</poem>
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|रचनाकार=सुनीता पाण्डेय 'सुरभि'
|अनुवादक=
|संग्रह=
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दिल मेरा जब से तेरा तलबगार हो गया।
महसूस कर रही हूँ मुझे प्यार हो गया॥
जब से मिले हो तुम मुझे राहे-हयात में-
मेरे भी ग़म का कोई ख़रीदार हो गया।
सच्चा नहीं है कोई भी इंसान जहाँ में-
झूठा हर एक शख़्स का किरदार हो गया।
पहरा था आसमान पर बादल का रात भर-
मुश्किल था फिर भी चाँद का दीदार हो गया।
बक्शी थी रब ने दौलते-दिल वह भी लुट गई-
दीवाना तेरा मुफ़लिस-ओ-नादार हो गया।
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