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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem>ख़्वाब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>ख़्वाब सच के रुबरु करते रहे
ज़ख़्म आंखों के रफू करते रहे
काटना था रात का तन्हा सफ़र
ख़ुद से हम ख़ुद गुफ़्तगू करते रहे
खोल कर लब दोस्तों के सामने
दर्द को बे आबरु करते रहे
चाहते थे हम ताअल्लुक़ हो बहाल
आप रिश्तों का लहू करते रहे
रोज़ हम करते रहे इक आरज़ू
रोज़ क़त्ले आरज़ू करते रहे</poem>
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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<poem>ख़्वाब सच के रुबरु करते रहे
ज़ख़्म आंखों के रफू करते रहे
काटना था रात का तन्हा सफ़र
ख़ुद से हम ख़ुद गुफ़्तगू करते रहे
खोल कर लब दोस्तों के सामने
दर्द को बे आबरु करते रहे
चाहते थे हम ताअल्लुक़ हो बहाल
आप रिश्तों का लहू करते रहे
रोज़ हम करते रहे इक आरज़ू
रोज़ क़त्ले आरज़ू करते रहे</poem>