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{{KKRachna
|रचनाकार=गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
वादा कर भरमाया तो।
झूठी कसमें खाया तो।।
कल तक टेढ़ा-मेढ़ा था,
आज चलो मुस्काया तो।।
पछताना ही होगा फिर,
अवसर पकड़ न पाया तो।।
जेब रही महफूज़ भले,
उसने हुनर दिखाया तो।।
आखि़र उसका क्या मतलब,
ग़्ाुस्सा नज़र न आया तो।।
साथ निभाया अगर नहीं,
कुछ दिन दिल बहलाया तो।।
फिर न कहूँगा ग़ज़ल कभी,
तुमसे दाद न पाया तो।।
</poem>
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|रचनाकार=गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
वादा कर भरमाया तो।
झूठी कसमें खाया तो।।
कल तक टेढ़ा-मेढ़ा था,
आज चलो मुस्काया तो।।
पछताना ही होगा फिर,
अवसर पकड़ न पाया तो।।
जेब रही महफूज़ भले,
उसने हुनर दिखाया तो।।
आखि़र उसका क्या मतलब,
ग़्ाुस्सा नज़र न आया तो।।
साथ निभाया अगर नहीं,
कुछ दिन दिल बहलाया तो।।
फिर न कहूँगा ग़ज़ल कभी,
तुमसे दाद न पाया तो।।
</poem>