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|रचनाकार=राजेन्द्र देथा
|अनुवादक=
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}}
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<poem>
मूक आवाजें
कितनी सुरीली होती है
यह मैंने
इन्हीं
दिनों सीखा है
तुमसे
फिर हाथोहाथ भेज दिया छपनेt इसे
"दुनिया के सबसे बड़े विरोधाभास के रूप में!
</poem>
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मूक आवाजें
कितनी सुरीली होती है
यह मैंने
इन्हीं
दिनों सीखा है
तुमसे
फिर हाथोहाथ भेज दिया छपनेt इसे
"दुनिया के सबसे बड़े विरोधाभास के रूप में!
</poem>