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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:अभिशाप भले ही दे दो, पर
:वरदान नहीं देना मुझको !
:जब सविता जैसा चमक पडूँ,
:जब मधुघट बनकर छलक पडूँ,
::तब लघुता मुझमें भर देना,
::अभिमान नहीं देना मुझको !
:मूक ग़रीबी का साया हो,
:जब सुख माया-ही-माया हो,
::संघर्षों में मिटने देना,
::पर, दान नहीं देना मुझको !
:1945
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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
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:अभिशाप भले ही दे दो, पर
:वरदान नहीं देना मुझको !
:जब सविता जैसा चमक पडूँ,
:जब मधुघट बनकर छलक पडूँ,
::तब लघुता मुझमें भर देना,
::अभिमान नहीं देना मुझको !
:मूक ग़रीबी का साया हो,
:जब सुख माया-ही-माया हो,
::संघर्षों में मिटने देना,
::पर, दान नहीं देना मुझको !
:1945
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