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रे कवि, तूने गीत सुनाए !!
जिनके स्वर-स्वर में इठलाकर,
बल खाकर चलते थे पत्थर,
जिनके स्वर-स्वर में पत्थर से
पत्थर कहता था आँखें भर —
’मानव क्यों तुझको पूजेगा
जब जग के मानव पथराए !’
रे कवि, तूने गीत सुनाए !!
 
जिनके स्वर-स्वर से प्रेरित हो
मैंने जग में दीप जलाया,
जिनके स्वर-स्वर से प्रेरित हो
मैंने जग का दीप बुझाया,
प्राण-विहंगम दूर गगन में
उड़कर भू के पास न आए !
रे कवि, तूने गीत सुनाए !!
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