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कवि से / गोपीकृष्ण 'गोपेश'

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रे कवि, तूने गीत सुनाए —

जिनके स्वर-स्वर में जीवन था,
जिनके स्वर-स्वर में यौवन था,
जिनके स्वर-स्वर में श्वासों में
कुछ सिहरन थी, कुछ कम्पन था,
जिनके स्वर-स्वर बादल बनकर
नयनों के सावन में छाए !
रे कवि, तूने गीत सुनाए !!

जिनके स्वर-स्वर में इठलाकर,
बल खाकर चलते थे पत्थर,
जिनके स्वर-स्वर में पत्थर से
पत्थर कहता था आँखें भर —
’मानव क्यों तुझको पूजेगा
जब जग के मानव पथराए !’
रे कवि, तूने गीत सुनाए !!

जिनके स्वर-स्वर से प्रेरित हो
मैंने जग में दीप जलाया,
जिनके स्वर-स्वर से प्रेरित हो
मैंने जग का दीप बुझाया,
प्राण-विहंगम दूर गगन में
उड़कर भू के पास न आए !
रे कवि, तूने गीत सुनाए !!