भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पहले धीमी,फिर तेज़ होती,
फिर इतनी तेज़ होती,इतने पास आती
कि कानों को बहरा करती...
मैंने यमराज के जूतों की शक्ल भी देखी,
कि उसने मुझे बिल्कुल अकेला छोड़ दिया;
इतने बड़े संसार में--
सारहीन-सत्वहीन-तत्वहीन--
बच्चन दा,अकेलापन ज़िन्दगी पर बड़ा सब्र करता है.
एक अशांत यात्रा है--आदिहीन...अंतहीन--
और मेरी आत्मा कुछ अशांति की ही खोज में
मारी मारी फिर रही है. आपके पास तो नहीं है ?
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,373
edits