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Kavita Kosh से
पहले धीमी,फिर तेज़ होती,
फिर इतनी तेज़ होती,इतने पास आती
मैंने यमराज के जूतों की शक्ल भी देखी,
कि उसने मुझे बिल्कुल अकेला छोड़ दिया;
इतने बड़े संसार में--
बच्चन दा,अकेलापन ज़िन्दगी पर बड़ा सब्र करता है.
एक अशांत यात्रा है--आदिहीन...अंतहीन--
और मेरी आत्मा कुछ अशांति की ही खोज में