भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
फूल के रस नै के जाणै, जो हो पत्थर का कीड़ा,
बाँझ लुगाई के ना जाणै, के हो जापे म्य पीड़ा,
मान का पान लगया होया बीड़ा, ना मीठा ना खारा।।