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अपना मानस अपना हो सै पास रहो चाहे न्यारा / प. रघुनाथ
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21:51, 26 अगस्त 2020
फूल के रस नै के जाणै, जो हो पत्थर का कीड़ा,
बाँझ लुगाई
के
ना
जाणै, के हो जापे म्य पीड़ा,
मान का पान लगया होया बीड़ा, ना मीठा ना खारा।।
Sandeeap Sharma
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